Tuesday, July 27, 2010
Tuesday, June 22, 2010
कभी पास हो तुम मेरे, कभी साथ नहीं मेरे|
कभी पास हो तुम मेरे, कभी साथ नहीं मेरे|
कभी दूर मे बैठे हो, कभी साथ मे चलते हो|
नींद भरी जो आँखों मे, तुम साथ मे चलते हो|
होले-होले होले से, हलके से कहते हो|
कभी पास हो तुम मेरे, कभी साथ नहीं मेरे|
कभी दूर मे बैठे हो, कभी साथ मे चलते हो|
कभी दूर मे बैठे हो, कभी साथ मे चलते हो|
नींद भरी जो आँखों मे, तुम साथ मे चलते हो|
होले-होले होले से, हलके से कहते हो|
कभी पास हो तुम मेरे, कभी साथ नहीं मेरे|
कभी दूर मे बैठे हो, कभी साथ मे चलते हो|
Monday, June 21, 2010
उन्नति की राह से फिसलता भारत
हम भारत के अतीत की ओर देख वर्त्तमान मे नज़र डाले तो भारत उन्नति की ओर अग्रसर होता प्रतीत होता है
देश के नागरिको की आर्थिक स्थिति उसके देश की अर्थव्यवस्था से प्रभावित होती है पहले यह कहाँ जाता था की भारत एक कृषि प्रधान देश है, मगर अब ऐसी स्थिति नहीं रही आज भारत की अर्थव्यवस्था केवाल कृषि पर निर्भर नहीं है ऐसे परिवर्तन का श्रेय ओद्योगिक क्रांति को जाता है भारत मे कम्प्यूटर के आगमन के पश्चात भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है नागरिको की आर्थिक स्थिति मे सुधर तो हुआ है, परन्तु यह देश की पूरी आबादी का बहुत छोटा सा हिस्सा है भारत की ८० प्रतिशत जनसंख्या मजदूर और किसानो की है तथा २० प्रतिशत मे पूंजीपति और सामान्य वर्ग के लोग आते है इसलिए भारत को मजदूर-किसानो का देश कहा जाता है
भारत कल भी गरीबो का देश था और आज भी गरीबो का देश है इसके लिए दोषी सरकार नहीं बल्कि आम नागरिक है, वे नागरिक पूंजीपति वर्ग मे आते है वे सामान्य वर्ग के नागरिक जो देश की अर्थव्यवस्था जैसी बातो पर समय गवाना व्यर्थ समझते है परन्तु वे यह नहीं जानते कि अर्थव्यवस्था के संतुलन को प्रदूषित करने मे वे अहम् भूमिका निभा रहे है
अर्थव्यवस्था का अर्थ उपभोगता और उत्पादन के संतुलन को बनाए रखना है मजदूर और किसान वर्ग इस देश के उपभोगता वर्ग है पूंजीपति वर्ग सस्ते मजदूर से मुनाफा कमाकर व्यापर मे निवेश दुसरे देशो मे करते है, जो इस देश कि अर्थव्यवस्था को कमजोर बनती है मार्क्सवाद की बातो पर हम नज़र डाले तो यह सच है की पूंजीवाद देश के अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है
हमें अतीत और वर्तमान के बदलाव से भारत को विश्व के प्रगति मार्ग पर अग्रसर कहना गलत न होगा, लेकिन देश के प्रगति के रफ़्तार के आकड़ेकुछ और ही बताते है सन १९४७ भारत के आजादी के समय एक डॉलर का मूल्य रुपयों मे १६ रूपए था परन्तु आज ४० से ५० रूपए तक है इन आकड़ो को देख भविष्य के आकड़ो की कल्पना...
रोजमर्रा के उपभोग करने वाली ९० प्रतिशत वस्तुए विदेशी होती है जिसका मुनाफे का बहुत बड़ा हिस्सा दुसरे देशो को चला जाता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है आज भारत के पास इतनी बड़ी मंडी होने के बावजूद यहाँ व्यापार विदेशी कम्पनियाँ कर रही है अगर हम इन सब बातो पर सोच-विचार कर कदम बढ़ाए तो हम भारत की अर्थव्यवस्था मे क्रांति की कल्पना कर सकते है केवल देश ही नहीं महज देश की ८० प्रतिशत उपभोगता के स्थिति मे सुधार आ सकता है
किसी देश की अर्थव्यवस्था उस देश के नागरिको के देश प्रेम के भावना से प्रभावित होती है आज हम अपने अतीत को भूल रहे है
अतीत जड़ है, तो भविष्य डाली
बिन अतीत के मनो हम,
बिन पत्तो की सुखी डाली
हम सामाजिक तौर पर स्वतन्त्र जरूर हो, मगर हम मंद गति से आर्थिक गुलामी की ओर बढ़ रहे है
देश के नागरिको की आर्थिक स्थिति उसके देश की अर्थव्यवस्था से प्रभावित होती है पहले यह कहाँ जाता था की भारत एक कृषि प्रधान देश है, मगर अब ऐसी स्थिति नहीं रही आज भारत की अर्थव्यवस्था केवाल कृषि पर निर्भर नहीं है ऐसे परिवर्तन का श्रेय ओद्योगिक क्रांति को जाता है भारत मे कम्प्यूटर के आगमन के पश्चात भारत की अर्थव्यवस्था मजबूत हुई है नागरिको की आर्थिक स्थिति मे सुधर तो हुआ है, परन्तु यह देश की पूरी आबादी का बहुत छोटा सा हिस्सा है भारत की ८० प्रतिशत जनसंख्या मजदूर और किसानो की है तथा २० प्रतिशत मे पूंजीपति और सामान्य वर्ग के लोग आते है इसलिए भारत को मजदूर-किसानो का देश कहा जाता है
भारत कल भी गरीबो का देश था और आज भी गरीबो का देश है इसके लिए दोषी सरकार नहीं बल्कि आम नागरिक है, वे नागरिक पूंजीपति वर्ग मे आते है वे सामान्य वर्ग के नागरिक जो देश की अर्थव्यवस्था जैसी बातो पर समय गवाना व्यर्थ समझते है परन्तु वे यह नहीं जानते कि अर्थव्यवस्था के संतुलन को प्रदूषित करने मे वे अहम् भूमिका निभा रहे है
अर्थव्यवस्था का अर्थ उपभोगता और उत्पादन के संतुलन को बनाए रखना है मजदूर और किसान वर्ग इस देश के उपभोगता वर्ग है पूंजीपति वर्ग सस्ते मजदूर से मुनाफा कमाकर व्यापर मे निवेश दुसरे देशो मे करते है, जो इस देश कि अर्थव्यवस्था को कमजोर बनती है मार्क्सवाद की बातो पर हम नज़र डाले तो यह सच है की पूंजीवाद देश के अर्थव्यवस्था को प्रभावित करता है
हमें अतीत और वर्तमान के बदलाव से भारत को विश्व के प्रगति मार्ग पर अग्रसर कहना गलत न होगा, लेकिन देश के प्रगति के रफ़्तार के आकड़ेकुछ और ही बताते है सन १९४७ भारत के आजादी के समय एक डॉलर का मूल्य रुपयों मे १६ रूपए था परन्तु आज ४० से ५० रूपए तक है इन आकड़ो को देख भविष्य के आकड़ो की कल्पना...
रोजमर्रा के उपभोग करने वाली ९० प्रतिशत वस्तुए विदेशी होती है जिसका मुनाफे का बहुत बड़ा हिस्सा दुसरे देशो को चला जाता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करती है आज भारत के पास इतनी बड़ी मंडी होने के बावजूद यहाँ व्यापार विदेशी कम्पनियाँ कर रही है अगर हम इन सब बातो पर सोच-विचार कर कदम बढ़ाए तो हम भारत की अर्थव्यवस्था मे क्रांति की कल्पना कर सकते है केवल देश ही नहीं महज देश की ८० प्रतिशत उपभोगता के स्थिति मे सुधार आ सकता है
किसी देश की अर्थव्यवस्था उस देश के नागरिको के देश प्रेम के भावना से प्रभावित होती है आज हम अपने अतीत को भूल रहे है
अतीत जड़ है, तो भविष्य डाली
बिन अतीत के मनो हम,
बिन पत्तो की सुखी डाली
हम सामाजिक तौर पर स्वतन्त्र जरूर हो, मगर हम मंद गति से आर्थिक गुलामी की ओर बढ़ रहे है
Subscribe to:
Posts (Atom)